शुक्रवार, 26 मार्च 2021

जिंदा मदार शाह रह0 की करामातें

जिंदा मदार शाह रह0 की करामातें🌙
 600 साल की उम्र पाने वाले वली अल्लाह जिन्होंने सहाबी से लेकर गौस पाक औऱ ख़्वाजा गरीब नवाज़ के बाद तक का वक्त देखा...💐💐💐

 ✍ जावेद शाह खजराना (लेखक) 
हजरत #मदारशाह रह0 से मदार सिलसिले की शुरुआत हुई। ज्यादातर शाह समाज के लोग आपसे मुरीद है । #शाह' सरनेम की शुरुआत आपने की। 
आपकी पैदाईश हिजरी सन 242 के मुताबिक सन 816 ईस्वी में ईद के दिन सोमवार को सुबह हुई। आपकी उम्र शरीफ 596 साल 16 दिन 6 घंटे रही। आपकी विलादत के 229 साल बाद हुज़ूर गौसे आज़म की विलादत हुई और 295 साल बाद हुज़ूर ख्वाजा गरीब नवाज़ की विलादत हुई।
 अशरफी सिलसिले के बुजुर्ग सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी की विलादत तो मदार शाह रह0 के 466 साल बाद हुई। इस तरह “” मदारूलआलमीन “” ने अपने मदार सिलसिले से लेकर कादरिया , चिश्तियाँ , अशरफी सिलसिला गुलज़ार होते हुए देखा। आपका वली दौर सबसे लंबा रहा। 
❤ हुज़ूर गौसे आज़म की उम्र 90 साल। ख्वाजा गरीब नवाज़ की उम्र 96 साल। सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी की उम्र 100 साल रही। हुज़ूर गौसे आज़म के विसाल के बाद हुज़ूर मदारूलआलमीन 277 साल तक दुनिया में हयात रहे। और #ख्वाजा_गरीब_नवाज़ के विसाल के बाद आप दुनिया में 205 साल तक हयात रहे और सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी के विसाल के बाद “मदारूलआलमीन “दुनिया में 30 साल हयात रहे। इस तरह क़ादरी , चिश्ती औऱ अशरफी सिलसिले के इन महान बुजुर्गों की पैदाइश से लेकर विसाल तक का लंबा अरसा हजरत #सैय्यद_बदीउददीन जिन्दा शाह मदार रह0 ने देखा। 


 हजरत #मदार_शाह का विसाल 596 की उम्र में 838 हिजरी मुताबिक सन 1434 ईस्वी में उत्तरप्रदेश के #मकनपुर में हुआ। जहाँ आपकी दरग़ाह मौजूद है। 596 जैसी लम्बी उम्र तक आपने दुनिया के ज्यादतर हिस्सों में पैदल- पैदल चलकर दीने इस्लाम की तब्लीग की। हिंदुस्तान में आपके करीब 1400 चिल्ले हैं जिनमें से एक चिल्ला #इंदौर के कड़ावघाट पर भी मौजूद है। इनके नाम से दक्कन में एक शहर आबाद है जिसका नाम मदार शाह के नाम से #मदरास था जो बाद में #मद्रास फिर चेन्नई हो गया। 

 सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी आपके साथ 12 साल तक रहे आप दोनों ने एक साथ हज भी अदा किया और बाबा रतन हिन्दी उर्फ “जूबैर” (भटिन्डा) रजि0 जो सहाबी ए रसूल थे। उनसे मुलाकात भी की। इस तरह से हुजूर मदारूलआलमीन और सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी “” **ताबई”” ** बुजुर्ग हुए। क्योंकि इन्होंने सहाबी ऐ रसूल के दीदार किए थे। _______________________________________ silsila e #madariya zindabad . Silsila e #qadriya zindabad . Silsila e #Ashrafiya zindabad . Silsila e #chishtiya zindabad .

मंगलवार, 23 मार्च 2021

छोरा 'खान' किनारे वाला

*छोरा 'खान' किनारे वाला*🚣🏻‍♂️🚣🏻‍♂️
✍ *जावेद शाह खजराना ( लेखक)*

*खान नदी* 💐💐💐
हमारा इंदौर शहर खान नदी के किनारे बसा है। अब हम इसे नदी नहीं बोल सकते क्योंकि इसके किनारे बसे लोगों ने ही अपनी सारी गंदगी इसमें उंडेलकर 'स्वच्छ' खान नदी को गंदा नाला बना दिया है।😢

इंदौर शहर का शायद ही कोई पुराना नागरिक (मुसलमान) हो जिसने अपने जीवन का बहुत-कुछ हिस्सा खान नाले किनारे ना बिताया हो। 😅
 एक वक्त जुनीइन्दौर में खान, चंद्रभागा ओर सरस्वती नदियाँ कलकल करते हुए बहती थी। जो अब सड़ा हुआ बदबूदार नाला बन चुकी हैं। 😢

चन्द्रभागा नदी का आकार चाँद जैसा है इसलिए इसे चन्द्रभागा नदी कहते है इसके किनारे आज भी चन्द्रभागा मोहल्ला (जुनीइन्दौर) आबाद है। 

खान नदी तो पत्थरों की खानों से निकली नालियों से बनी है। जो रेसीडेंसी , आज़ाद नगर , छावनी , हाथीपाले , चम्पाबाग से निकलकर बड़ा रावला , साऊथ ओर नार्थ तोड़े से आगे बढ़कर कृष्णपुरा पहुँचती है। ये ही असली खान नदी है।
दरअसल खान नदी 3 नदियों का संगम है जो चारों तरफ से आकर कृष्णपुरा छतरियों के यहाँ मिलती है। 

 तीसरी नदी सरस्वती है जो पिपलिया पाला , माणिक बाग,  लालबाग , बारामत्था , छत्रीपुरा , कढ़ावघाट , हरसिद्धि , भाट मोहल्ले होते हुए तोड़े के पीछे से आगे बढ़कर कृष्णपुरा पर मिल जाती है।

चन्द्रभागा भी लालबाग के पीछे से जबरन कॉलोनी ,देवश्री रेलवे क्रॉसिंग होकर कटकट पूरा , कलालकुई , आलापुरा होते हुए चंद्रभागा नदी (अब नाला ) खान नदी में मिल जाती है।
 खान नदी कृष्णपुरा से होते हुए सांवेर पहुँचती है।
बाद में इसका भी संगम क्षिप्रा में हो जाता है।

बिलावली के पीपलियापाला तालाब से निकली खान नदी 50 किमी का सफर तय कर शिप्रा में मिलती है।
नदी का आधा सफर 25 किमी का हिस्सा शहर के बीच से होकर ही गुजरता है। व्यवस्थित सिवेज प्लान नहीं होने के कारण सालों से शहर भर की गंदगी इसी में डाली जा रही है। 

खजराना निवासी जावेद शाह कहते हैं मेरे पूर्वज तहसन शाह 300 बरस पहले खान नदी के किनारे रहते थे ।
कलालकुई भी चन्द्रभागा नदी (नाले) किनारे बसा है , जहाँ मेरा जन्म हुआ,  इसी के साए में हम बड़े हुए। 
फर्क सिर्फ इतना है कि पुराने लोग नदी पर गर्व करते थे और हमें शर्म आती है।
क्योंकि नदी अब नाला है देखने वालों को हम नदी किनारे वाले कम *नाले किनारे वाले* ज्यादा नजर आते हैं।

चाहे कुछ भी हो आखिर हम *छोरे 'खान' किनारे वाले* ही कहलाएंगे। ❤️