गुरुवार, 20 मई 2021

इंसानियत के मददगार अकरम दस्तक़

 इंसानियत के मददगार👍

हक़ीक़त में अकरम भाई दयालू है..💚

✍ जावेद शाह खजराना (लेखक)


जैसा नाम है वैसी ही सिफ़त है अकरम दस्तक़ भाई की।

अपने नाम को सार्थक करते अकरम भाई के व्यक्तित्व में उदारता , रहमदिली शामिल है।

बड़े दिल वाले इस शख़्स के दिल में सभी के प्रति मोहब्बत भी है। बहुत ज्यादा भावुकता औऱ संजीदगी भी इनकी तबियत में शामिल है । 🌷

तभी तो अकरम भाई पत्रकारिता के धर्म को ईमानदारी से निभाने के साथ-साथ कोरोना जैसी महामारी में बेबस और लाचार मरीजों की सेवा करके इंसानियत का फर्ज भी बड़ी शिद्दत से निभा रहे है। 😘

ऐसे नेक शख़्स को मेरा सलाम । 💚

नीलोफ़र मिर्ज़ा , अकरम दस्तक़ , ज़ैद पठान
औऱ अय्यूब भारती की टीम


वैसे तो अकरम भाई उम्दा शख़्सियत के मालिक और हरफनमौला पत्रकार है। तंज भरी खबरें हो या फिर किसी  हुनरमन्द की तारीफ़ बहुत ही शानदार अल्फाजों से उनकी शख्सियत का ख़ाका खींचते है।

 जब से कोरोना ने पैर पसारे है इनके पैर घर में टिकते ही नहीं। दिन-रात भागदौड़ करके जहाँ से भी परेशान हाल की खबर मिलती है अकरम भाई दौड़ पड़ते है।


अपनी आदत के मुताबिक अकरम भाई हमेशा लोगों को आगे बढ़ाते है। मैं यहाँ इमानदारी से इनकी इस खूबी का बयान करूँगा क्योंकि इन्होंने मेरी भी इस मामले में हमेशा मदद की है। ज़ज़ाक अल्लाह खैर मेरे भाई।🌷


आजकल इनके साथी भी जिसमें प्रमुख रूप से नीलोफ़र मिर्जा मेडम का जिक्र करना चाहूँगा। नीलोफ़र मेडम ने भी इस मुश्किल घड़ी में कोई कसर नहीं छोड़ी । जरूरतमंदों की मदद के लिए उन्होंने घर से पैसे लाकर भी मिस्कीनों की मदद खुशी-खुशी की है। 👌

ज्यादातर मामलों में अकरम भाई औऱ नीलोफ़र मेडम ने आपस में पूंजी मिलाकर भी जरूरतमंद लोगों की राह में लुटा दी। अब भी इनकी टीम इस नेक काम में लगी है।

अल्लाह इनकी हर मुरादें पूरी करें।

अल्लाह इन्हें खूब दौलत से नवाजे। 🌷🌷


वैसे तो मेरे ये दोनों भाई-बहन जरूरत पड़ने पर सभी समाजसेवी संस्था का भी हाथ बंटा देते है। इनका मकसद समाजसेवा है वाहवाही लूटना नहीं।

मैं यहां किसी कमेटी का उल्लेख नहीं करूंगा क्योंकि मेरी नजर में अकरम भाई खुद चलती-फिरती कमेटी (समाजसेवी संस्था ) है। 

उन्हें किसी कमेटी-फमेटी के साथ महदूद करके उनकी शान को कम नहीं करना चाहता।


वैसे भी उनकी अपनी टीम है जो मरीजों की मदद में दिनरात लगी है। आप भी कोरोना के किसी मरीज के इलाज के लिए इनकी टीम से राब्ता कायम कर सकते हैं।


किसी भी ज़रूरतमंद को अगर रेड ज़ोन हॉस्पिटल में जनरल वार्ड या ICU बेड की ज़रूरत हो तो मेरे इस नेक भाई से जरूर संपर्क करें...👍


नीलोफर मिर्ज़ा : 99264-94987

अकरम दस्तक : 9179548880

ज़ैद पठान : 9009986600

अय्यूब भारती देवास : 7694926005


अलग-अलग प्राइवेट कोविड अस्पतालों में आज लगभग 40 जनरल वार्ड बेड और दस ICU बेड खाली हैं।

अल्लाह का शुक्र है govt हॉस्पिटल्स में भी bed खाली हैं। जहाँ जैसी भी सहूलियत पेश आएगी 

मेरे भाई अपनी टीम के साथ हाजिर हो जायेगे।

आप लोगों से गुजारिश है ऐसे लोगों के हक में दुआ करे ताकि ये नेक फ़रिश्तें इसी तरह इंसानियत की खिदमत को अंजाम देते रहे।

#जावेदशाहखजराना 

#javedshahkhajrana

शुक्रवार, 26 मार्च 2021

जिंदा मदार शाह रह0 की करामातें

जिंदा मदार शाह रह0 की करामातें🌙
 600 साल की उम्र पाने वाले वली अल्लाह जिन्होंने सहाबी से लेकर गौस पाक औऱ ख़्वाजा गरीब नवाज़ के बाद तक का वक्त देखा...💐💐💐

 ✍ जावेद शाह खजराना (लेखक) 
हजरत #मदारशाह रह0 से मदार सिलसिले की शुरुआत हुई। ज्यादातर शाह समाज के लोग आपसे मुरीद है । #शाह' सरनेम की शुरुआत आपने की। 
आपकी पैदाईश हिजरी सन 242 के मुताबिक सन 816 ईस्वी में ईद के दिन सोमवार को सुबह हुई। आपकी उम्र शरीफ 596 साल 16 दिन 6 घंटे रही। आपकी विलादत के 229 साल बाद हुज़ूर गौसे आज़म की विलादत हुई और 295 साल बाद हुज़ूर ख्वाजा गरीब नवाज़ की विलादत हुई।
 अशरफी सिलसिले के बुजुर्ग सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी की विलादत तो मदार शाह रह0 के 466 साल बाद हुई। इस तरह “” मदारूलआलमीन “” ने अपने मदार सिलसिले से लेकर कादरिया , चिश्तियाँ , अशरफी सिलसिला गुलज़ार होते हुए देखा। आपका वली दौर सबसे लंबा रहा। 
❤ हुज़ूर गौसे आज़म की उम्र 90 साल। ख्वाजा गरीब नवाज़ की उम्र 96 साल। सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी की उम्र 100 साल रही। हुज़ूर गौसे आज़म के विसाल के बाद हुज़ूर मदारूलआलमीन 277 साल तक दुनिया में हयात रहे। और #ख्वाजा_गरीब_नवाज़ के विसाल के बाद आप दुनिया में 205 साल तक हयात रहे और सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी के विसाल के बाद “मदारूलआलमीन “दुनिया में 30 साल हयात रहे। इस तरह क़ादरी , चिश्ती औऱ अशरफी सिलसिले के इन महान बुजुर्गों की पैदाइश से लेकर विसाल तक का लंबा अरसा हजरत #सैय्यद_बदीउददीन जिन्दा शाह मदार रह0 ने देखा। 


 हजरत #मदार_शाह का विसाल 596 की उम्र में 838 हिजरी मुताबिक सन 1434 ईस्वी में उत्तरप्रदेश के #मकनपुर में हुआ। जहाँ आपकी दरग़ाह मौजूद है। 596 जैसी लम्बी उम्र तक आपने दुनिया के ज्यादतर हिस्सों में पैदल- पैदल चलकर दीने इस्लाम की तब्लीग की। हिंदुस्तान में आपके करीब 1400 चिल्ले हैं जिनमें से एक चिल्ला #इंदौर के कड़ावघाट पर भी मौजूद है। इनके नाम से दक्कन में एक शहर आबाद है जिसका नाम मदार शाह के नाम से #मदरास था जो बाद में #मद्रास फिर चेन्नई हो गया। 

 सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी आपके साथ 12 साल तक रहे आप दोनों ने एक साथ हज भी अदा किया और बाबा रतन हिन्दी उर्फ “जूबैर” (भटिन्डा) रजि0 जो सहाबी ए रसूल थे। उनसे मुलाकात भी की। इस तरह से हुजूर मदारूलआलमीन और सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी “” **ताबई”” ** बुजुर्ग हुए। क्योंकि इन्होंने सहाबी ऐ रसूल के दीदार किए थे। _______________________________________ silsila e #madariya zindabad . Silsila e #qadriya zindabad . Silsila e #Ashrafiya zindabad . Silsila e #chishtiya zindabad .

मंगलवार, 23 मार्च 2021

छोरा 'खान' किनारे वाला

*छोरा 'खान' किनारे वाला*🚣🏻‍♂️🚣🏻‍♂️
✍ *जावेद शाह खजराना ( लेखक)*

*खान नदी* 💐💐💐
हमारा इंदौर शहर खान नदी के किनारे बसा है। अब हम इसे नदी नहीं बोल सकते क्योंकि इसके किनारे बसे लोगों ने ही अपनी सारी गंदगी इसमें उंडेलकर 'स्वच्छ' खान नदी को गंदा नाला बना दिया है।😢

इंदौर शहर का शायद ही कोई पुराना नागरिक (मुसलमान) हो जिसने अपने जीवन का बहुत-कुछ हिस्सा खान नाले किनारे ना बिताया हो। 😅
 एक वक्त जुनीइन्दौर में खान, चंद्रभागा ओर सरस्वती नदियाँ कलकल करते हुए बहती थी। जो अब सड़ा हुआ बदबूदार नाला बन चुकी हैं। 😢

चन्द्रभागा नदी का आकार चाँद जैसा है इसलिए इसे चन्द्रभागा नदी कहते है इसके किनारे आज भी चन्द्रभागा मोहल्ला (जुनीइन्दौर) आबाद है। 

खान नदी तो पत्थरों की खानों से निकली नालियों से बनी है। जो रेसीडेंसी , आज़ाद नगर , छावनी , हाथीपाले , चम्पाबाग से निकलकर बड़ा रावला , साऊथ ओर नार्थ तोड़े से आगे बढ़कर कृष्णपुरा पहुँचती है। ये ही असली खान नदी है।
दरअसल खान नदी 3 नदियों का संगम है जो चारों तरफ से आकर कृष्णपुरा छतरियों के यहाँ मिलती है। 

 तीसरी नदी सरस्वती है जो पिपलिया पाला , माणिक बाग,  लालबाग , बारामत्था , छत्रीपुरा , कढ़ावघाट , हरसिद्धि , भाट मोहल्ले होते हुए तोड़े के पीछे से आगे बढ़कर कृष्णपुरा पर मिल जाती है।

चन्द्रभागा भी लालबाग के पीछे से जबरन कॉलोनी ,देवश्री रेलवे क्रॉसिंग होकर कटकट पूरा , कलालकुई , आलापुरा होते हुए चंद्रभागा नदी (अब नाला ) खान नदी में मिल जाती है।
 खान नदी कृष्णपुरा से होते हुए सांवेर पहुँचती है।
बाद में इसका भी संगम क्षिप्रा में हो जाता है।

बिलावली के पीपलियापाला तालाब से निकली खान नदी 50 किमी का सफर तय कर शिप्रा में मिलती है।
नदी का आधा सफर 25 किमी का हिस्सा शहर के बीच से होकर ही गुजरता है। व्यवस्थित सिवेज प्लान नहीं होने के कारण सालों से शहर भर की गंदगी इसी में डाली जा रही है। 

खजराना निवासी जावेद शाह कहते हैं मेरे पूर्वज तहसन शाह 300 बरस पहले खान नदी के किनारे रहते थे ।
कलालकुई भी चन्द्रभागा नदी (नाले) किनारे बसा है , जहाँ मेरा जन्म हुआ,  इसी के साए में हम बड़े हुए। 
फर्क सिर्फ इतना है कि पुराने लोग नदी पर गर्व करते थे और हमें शर्म आती है।
क्योंकि नदी अब नाला है देखने वालों को हम नदी किनारे वाले कम *नाले किनारे वाले* ज्यादा नजर आते हैं।

चाहे कुछ भी हो आखिर हम *छोरे 'खान' किनारे वाले* ही कहलाएंगे। ❤️

सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

6टी शरीफ़ क्या है?

6टी शरीफ़ क्या है? 🕌 क्यों मनाते है हर महीने 6टी शरीफ़? 💐💐💐 ✍ जावेद शाह खजराना (लेखक) दोस्तों आपने लोगों को ख़्वाजा गरीब नवाज की छटी शरीफ की चर्चा करते अक्सर देखा और सुना भी होगा कि 6टी पर अजमेर चलना है वगैरह-वगैरह । हो सकता है आप भी 6टी शरीफ पर कई मर्तबा अजमेर शरीफ गए हो? घरों में ओरतें भी अक्सर इस्लामी महीने की हर 6 तारीख को गरीब नवाज के नाम से नियाज और फतेहा भी करती है। चाँद की हर 6 तारीख को अजमेर में ख़्वाजा के चाहने वालों की भीड़ बढ़ जाती हैं। दरग़ाह शरीफ पर लोग दूर-दूर से 6टी शरीफ की ख़ास फतेहा में शरीक होने आते हैं बहुत-से दीवाने ऐसे हैं जो हर महीने की 6 तारीख को बरसों से अजमेर जा रहे हैं। क्या आप जानते है 6टी शरीफ क्या है? इसकी क्या फ़ज़ीलत है? दोस्तों जहाँ अभी दरग़ाह शरीफ़ हैं , गरीब नवाज उसी जगह पर रहते थे। ये मुकाम उनका हुजरा (कमरा) था। सन 1236 ईसवी के रजब महीने की बात है। आपकी उम्र 93 साल हो चुकी थी। अज़मेर आकर इस्लाम फैलाने की शुरुआत करके आपने सभी जरूरी एहकाम पूरे कर लिए थे। अब अल्लाह से मिलने का वक्त करीब आ गया था। 5 और 6 रजब यानि 6टी को ख्वाजा साहेब अपने कमरे के अंदर गए और क़ुरान-ए-पाक पढने लगे, रात भर उनकी आवाज़ सुनाई दी, लेकिन सुबह को आवाज़ सुनाई नहीं दी। जब कमरा खोल कर देखा गया, तब उन्होंने पर्दा फ़रमा लिया था। उनकी पेशानी ( माथे ) पर सिर्फ यह लाईन चमक रही थी "वे अल्लाह के दोस्त थे और इस दुनिया को अल्लाह का प्रेम पाने के लिए छोड दिया।" जब अल्लाह वाले इस दुनिया को छोड़कर जाते है और रब से मिल जाते है तब इंतकाल का दिन उनके लिए ग़म और मातम का नहीं होता बल्कि खुशी यानि उर्स का होता है। इसलिए उनके इंतकाल की तारीख को उर्स मनाकर उन्हें याद किया जाता हैं। गरीब नवाज रह0 रजब के महीने की 6 तारीख को दुनिया ऐ फ़ानी से रुख्सत हुए इसलिए रजब की 6 तारीख को उनका उर्स मनाया जाता है। चूंकि गरीब नवाज़ के चाहने वाले उनके पर्दा फरमाने की तारीख़ को उर्स (खुशी ) की तारीख़ मानते है इसलिए हर महीने चाँद की 6 तारीख़ को 6टी शरीफ मनाते है। हक मोईन दुआ में मुझ फ़क़ीर को याद रखे। #जावेद_शाह_खजराना

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

मिस्वाक (दातुन) के फायदे

मिस्वाक (दातुन) के बेशक़ीमती फायदे के बारे में जानिए👌 ✍ जावेद शाह खजराना (लेखक) दोस्तों आपने मस्जिदों के वुजू-खाने में नमाजियों को लकड़ी की ब्रशनुमा छड़ी चबाते हुए जरुर देखा होगा? दरअसल ये ब्रशनुमा लकड़ी रेगिस्तान में पैदा होने वाले पेड़ #पीलू या #मिस्वाक की टहनियां हैं। मिसवाक के पेड़ को हिंदुस्तान में #पीलू से बख़ूबी जानते है। ये एक झाड़ीनुमा दरख़्त है जो बहुत तेजी से फैलता है। पीलू के वृक्ष बहुत टेढ़े-मेढ़े होते हैं । उन पर पीलुओं के बड़े-बड़े गुच्छे फलों के रूप में लगते हैं । इन वृक्ष पर दिसम्बर मास में फुल आते हैं और मार्च मास में फल पक जाते हैं । #पीलू से जुड़ी कुछ #रोचक जानकारी आपके साथ #शेयर कर रहा हूँ। पसंद आए तो आप भी जरूर शेयर करना ताकि नई पीढ़ी भी #नबी की सुन्नतों से वाकिफ़ हो जाए। मिस्वाक के #पेड़ की सिर्फ टहनियां ही उपयोगी नहीं होती बल्कि इसके पत्तें, फल और छाल भी कई बीमारियों में काम आती है जैसे पीलू के पत्ते, #वातनाशक, मूत्रजन्य (पथरी) एवं #क्षीरजनन हैं, जड़ तथा छाल भी अनेक रोगों के लिए लाभकारी है । चोट अथवा जख्म पर पीलू की छाल को बांध देने से आराम मिलता है । #बुखार की हालत में जब रोगी बुखार से तड़प रहा हो तो पीलू के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे #तीन-तीन घंटों के पश्चात् पिलाते रहें । बुखार जल्दी उतरेगा । #बवासीर के मरीजों के लिए #पीलू का रस बहुत ही #गुणकारी माना गया है क्योंकि यह रस मीठा होता है । लोग इसे बहुत खुश होकर पीते हैं । #बवासीर रोगियों को दिन में तीन बार इस रस का सेवन करना चाहिए । इसकी टहनियों की #दातून इस्लामी संस्कृति में बहुत मशहूर और आम चलन में है। मिस्वाक की लकड़ी में नमक और खास क़िस्म का #रेजिन पाया है जो दातों में चमक पैदा करता है। मिसवाक करने से जब इस की एक तह #दातों पर जम जाती है तो कीड़े आदि से दाँत मेहफ़ूज़ रहतें हैं। इस प्रकार #चिकित्सकीय नज़रिये से भी मिस्वाक दांतों के लिए बहुत फायदेमंद है। क़रीब 7 हजार साल से मिस्वाक का इस्तेमाल हो रहा है।प्यारे नबी हजरत #मोहम्मद सल्लाहु अलैय वस्सलम भी मिसवाक का इस्तेमाल हमेशा करते थे। इसी वजह से मिसवाक करना सुन्नत भी है। मिसवाक करने से दाँत तो मजबूत होते ही है साथ में पेट से सम्बंधित बीमारी भी दूर होती है। इसके आलावा मिस्वाक के इस्तेमाल से मुँह से ताजी हवा लिए खुश्बू के झोंके भी निकलते है। मिस्वाक एक बेहतरीन माउथ फ्रेशनर है जो मुँह की बदबू को दूर भगाता है। यही वजह है कि हर नमाज में वुजू से पहले मिसवाक करते है। मिस्वाक के इस्तेमाल करने से मुँह में दांत की सड़न कम करने वाली लार बनती है । जो दांतो को सड़ने से बचाती है। इसके साथ मिस्‍वाक इनामेल को मजबूत करने में मदद करता है, ज‍िससे दांत सफेद रहते हैं। हिंदुस्तान में टिहू के पेड़ के अलावा #नीम , #आम और #बबूल के पेड़ की टहनियों से भी #दातुन बनाते है। लेकिन सिर्फ़ मिसवाक और नीम ही ऐसे गिने चुने पेड़ है जिनकी दातुन सालभर इस्तेमाल कर सकते है। बबूल और आम की दातुन #मौसम के हिसाब से इस्तेमाल करते है। आपने मस्जिदों के वजुखाने में खुली पड़ी मिस्वाक देखी होगी। हमें किसी दूसरे की झूठी मिसवाक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। मिसवाक पुरानी होने पर उसे काटकर धूप में सुखाकर फिर इस्तेमाल कर सकते है। कोशिश करें कि मिसवाक को खुले में ना रखे । उसे प्लास्टिक के एक छोटे डिब्बे में रखे। #कब्रस्तान और मस्जिद के सहन में टिहू यानि मिसवाक का पेड़ जरूर लगाएं।। समय- समय पर उसकी कांटछांट करके दातुन बनाते रहे। ताकि झाड़ियां भी ना फैले और #मुस्लिम कौम को आसानी से मुफ़्त में ताजा-तरीन मिस्वाक (दातुन) मिल सके। #जावेद_शाह_खजराना

मिस्वाक के बेशुमार फ़ायदे

 मिस्वाक (दातुन) के बेशक़ीमती फायदे के बारे में जानिए👌

✍ जावेद शाह खजराना (लेखक)

दोस्तों आपने मस्जिदों के वुजू-खाने में नमाजियों को लकड़ी की ब्रशनुमा छड़ी चबाते हुए जरुर देखा होगा?
दरअसल ये ब्रशनुमा लकड़ी रेगिस्तान में पैदा होने वाले पेड़ #पीलू या #मिस्वाक की टहनियां हैं।

मिसवाक के पेड़ को हिंदुस्तान में #पीलू से बख़ूबी जानते है। ये एक झाड़ीनुमा दरख़्त है जो बहुत तेजी से फैलता है। पीलू के वृक्ष बहुत टेढ़े-मेढ़े होते हैं । उन पर पीलुओं के बड़े-बड़े गुच्छे फलों के रूप में लगते हैं । इन वृक्ष पर दिसम्बर मास में फुल आते हैं और मार्च मास में फल पक जाते हैं ।

पीलू यानी मिस्वाक का पेड़


#पीलू से जुड़ी कुछ #रोचक जानकारी आपके साथ #शेयर कर रहा हूँ। पसंद आए तो आप भी जरूर शेयर करना ताकि नई पीढ़ी भी #नबी की सुन्नतों से वाकिफ़ हो जाए।

मिस्वाक के #पेड़ की सिर्फ टहनियां ही उपयोगी नहीं होती बल्कि इसके पत्तें, फल और छाल भी कई बीमारियों में काम आती है जैसे

पीलू के पत्ते, #वातनाशक, मूत्रजन्य (पथरी) एवं #क्षीरजनन हैं, जड़ तथा छाल भी अनेक रोगों के लिए लाभकारी है । चोट अथवा जख्म पर पीलू की छाल को बांध देने से आराम मिलता है ।

#बुखार की हालत में जब रोगी बुखार से तड़प रहा हो तो पीलू के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे #तीन-तीन घंटों के पश्चात् पिलाते रहें । बुखार जल्दी उतरेगा ।

#बवासीर के मरीजों के लिए #पीलू का रस बहुत ही #गुणकारी माना गया है क्योंकि यह रस मीठा होता है । लोग इसे बहुत खुश होकर पीते हैं । #बवासीर रोगियों को दिन में तीन बार इस रस का सेवन करना चाहिए ।

इसकी टहनियों की #दातून इस्लामी संस्कृति में बहुत मशहूर और आम चलन में है। मिस्वाक की लकड़ी में नमक और खास क़िस्म का #रेजिन पाया है जो दातों में चमक पैदा करता है। मिसवाक करने से जब इस की एक तह #दातों पर जम जाती है तो कीड़े आदि से दाँत मेहफ़ूज़ रहतें हैं। इस प्रकार #चिकित्सकीय नज़रिये से भी मिस्वाक दांतों के लिए बहुत फायदेमंद है।

क़रीब 7 हजार साल से मिस्वाक का इस्तेमाल हो रहा है।प्यारे नबी हजरत #मोहम्मद सल्लाहु अलैय वस्सलम भी मिसवाक का इस्तेमाल हमेशा करते थे। इसी वजह से मिसवाक करना सुन्नत भी है।


मिसवाक करने से दाँत तो मजबूत होते ही है साथ में पेट से सम्बंधित बीमारी भी दूर होती है। इसके आलावा  मिस्वाक के इस्तेमाल से मुँह से ताजी हवा लिए खुश्बू के झोंके भी निकलते है। मिस्वाक एक बेहतरीन माउथ फ्रेशनर है जो मुँह की बदबू को दूर भगाता है।
यही वजह है कि हर नमाज में वुजू से पहले मिसवाक करते है।
मिस्वाक के इस्तेमाल करने से मुँह में दांत की सड़न कम करने वाली लार बनती है । जो दांतो को सड़ने से बचाती है। इसके साथ मिस्‍वाक इनामेल को मजबूत करने में मदद करता है, ज‍िससे दांत सफेद रहते हैं।

हिंदुस्तान में टिहू के पेड़ के अलावा #नीम , #आम और #बबूल के पेड़ की टहनियों से भी #दातुन बनाते है। लेकिन सिर्फ़ मिसवाक और नीम ही ऐसे गिने चुने पेड़ है जिनकी दातुन सालभर इस्तेमाल कर सकते है।
बबूल और आम की दातुन #मौसम के हिसाब से इस्तेमाल करते है।

आपने मस्जिदों के वजुखाने में खुली पड़ी मिस्वाक देखी होगी। हमें किसी दूसरे की झूठी मिसवाक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
मिसवाक पुरानी होने पर उसे काटकर धूप में सुखाकर फिर इस्तेमाल कर सकते है। कोशिश करें कि मिसवाक को खुले में ना रखे । उसे प्लास्टिक के एक छोटे डिब्बे में रखे।
#कब्रस्तान और मस्जिद के सहन में टिहू यानि मिसवाक का पेड़ जरूर लगाएं।।
समय- समय पर उसकी कांटछांट करके दातुन बनाते रहे। ताकि झाड़ियां भी ना फैले और #मुस्लिम कौम को आसानी से मुफ़्त में ताजा-तरीन मिस्वाक  (दातुन) मिल सके।
#जावेद_शाह_खजराना

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

हजरत सैयद नाहरशाह वली की दरग़ाह - खजराना

✍ जावेद शाह खजराना (लेखक)

इंदौर के पूर्वी रिंगरोड और बायपास के बिचौ-बीच बसा [[खजराना]] हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों के धार्मिक स्थलों के कारण जग प्रसिद्ध है। हजरत नाहरशाह वली की दरग़ाह , [खजराना गणेश मंदिर ] और कालिका मंदिर यहाँ के पवित्र धर्मस्थल हैं।


खजराने का इतिहास
लेखक जावेद शाह खजराना ने जानकारी देते हुए बताया कि परमारकालीन खजराना इंदौर की बसाहट से पहले से आबाद है। खजराना परमार राजा भोज की सल्तनत का एक भाग था। उज्जैन और धार में राजा भोज शासन करते थे। 
इंदौर से आगे कम्पेल आबाद था। खजराना का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है। खजराना स्थित गणेश मंदिर अब विश्व विख्यात हो चुका है इसके ठीक आगे कालिका माता मंदिर भी अपनी सबसे बड़ी प्रतिमा को लेकर विख्यात है । थोड़ा आगे बढ़ने पर प्रसिद्ध मुस्लिम सूफी संत हजरत नाहरशाह वली की दरगाह है।
ऐतिहासिक प्रमाण

इंदौर दिग्दर्शिका' पुस्तक में लेखक नगेन्द्र आज़ाद लिखते है कि नाहरशाह वली की दुआओं से मुगल बादशाह शाह आलम को सिंहासन प्राप्त हुआ था। लेखक जावेद शाह ने बताया कि मुगलों की बदहाली वजीरों की गद्दारी से शुरू हो चुकी थी ।

सन 1759 में हद हो गई जब वजीर ने अपने बादशाह आलमगीर को एक फ़क़ीर के हाथों मरवा दिया। बदनसीब आलमगीर की लाश लालकिले की खिड़की से यमुना नदी के किनारे फेंक दी। जहां हिंदुस्तान के शहंशाह की लाश बिल्कुल नंगी पड़ी रही, बाद में उसे अपने बाप-दादा हुमायूं के मकबरे में दफना दिया गया।

उस वक़्त आलमगीर का बेटा अली गौहर बिहार में था। अली गौहर ने "शाह आलम" की उपाधि धारण करके स्वयं को भारत का सम्राट घोषित किया ,लेकिन दिल्ली दूर थी।

खजराना स्थित हजरत सैयद नाहरशाह वली की दरग़ाह

खजराना में हजरत नाहरशाह वली के इंतकाल को करीब 60 साल गुजर चुके थे। हुसैन शाह वल्द सखी शाह खादिम थे। अली गौहर बादशाह बहुत दुविधा में फंसा था । अपने बाप की हत्या के बाद 12 साल तक दिल्ली की ओर बढ़ने की हिम्मत ना जुटा सका। पीर-फकीरों के दर पर दुआ की दरख़्वास्त लिए भटकता फिरता।


खजराना में बादशाह की अर्जी पहुंची , हुसैन शाह और उनके साथियों ने बादशाह के लिए नाहरशाह वली के आस्ताने पर दुआ की ।

अली गौहर बादशाह की किस्मत चमकी जनवरी 1772 में वो दिल्ली पहुंचा। जब तक शाह आलम बिहार में रहा अंग्रेजों के प्रभाव में था। यानी सन 1760 से 1772 तक का समय । इसी बीच शाह आलम ने बंगाल को वापस जितने की कोशिश की लेकिन सफल नही हुआ। 1764 में बक्सर की जंग में हारने के बाद मजबूर होकर बंगाल,बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दी ,अंग्रेज शाह आलम की बहुत बेइज्जती करते थे फिर भी उसे बादशाह मानते ।


उस समय खजराना में नाहरशाह वली की दरगाह पर सबसे पहले खादिम और नाहरशाह के साथी हजरत सखी शाह के बेटे हुसैन शाह मुजावर थे । ज्यादा समय नही गुज़रा था । शाह आलम ने यहां के बुजुर्गों से भी दुआ करवाई थी । पीर -फकीरों की दुआ कुबूल हुई । 1772 में शाह आलम दिल्ली पहुंचा । 1779 में उसने अपनी परेशानियों को लेकर फिर पीर-फकीरों को याद किया और सम्मान में खजराना की दरगाह नाहरशाह वली के निवर्तमान खादिम और मुजावर हजरत हुसैन शाह को 50 बीघा जमीन हमेशा-हमेशा के वास्ते सनद लिखकर दी। गवाही में बुजुर्गों को लिया जिनके दस्तखत सनद पर हैं। इस सनद पर खजराना के उस दौर के पीर-फकीरों पर के दस्तखत है।

ये सनद फारसी में है जो मैंने पोस्ट पर दिखाई है। ओरिजनल सनद आज भी खजराना में रखी है जिसे कोर्ट से चुरा लिया गया था।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान में हाईकोर्ट में दरगाह का केस लंबित है । बदकिस्मती की बात है कि नाहरशाह वली के खादिम सुप्रीम कोर्ट से केस जितने के बाद भी दरगाह पर काबिज नही हो पाए। पिछले पच्चीस सालों से दरगाह पर वक़्फ़ बोर्ड का कब्जा है।